अन्ततः कौन उड़ायेगा एयर इंडिया
अन्ततः कौन उड़ायेगा एयर इंडिया
आर.के. सिन्हा
सरकारी एयरलाइन कंपनी एयर इंडिया को कब्जा करने के लिए टाटा ग्रुप और स्पाइस जेट के प्रमोटर अजय सिंह ने अपने –अपने दावे पेश किये हैं। अजय सिंह एक तरह से टाटा ग्रुप के आगे डटकर खड़े हो गए हैं। वे खुली चुनौती दे रहे हैं टाटा ग्रुप को। हालांकि इस बात का फैसला भी जल्दी ही हो जाएगा कि आखिर एयर इंडिया आखिरकार किसे मिलेगी। फिर भी यह तो स्वीकार करना ही होगा कि जब देश और दुनिया की तमाम बड़ी कंपनियां एयर इंडिया पर स्वामित्व जमाने के इरादे से पीछे हट गईं, तब टाटा ग्रुप के अलावा एक पहली पीढ़ी का आंत्रप्योनर मैदान में कूदा। उसके सपनों की उड़ान तो देखिए। दरअसल, कारोबार की दुनिया में सफलता उसे ही मिलती है जो बेखौफ होकर आगे बढ़ता है। जो हौसलेपूर्वक आगे बढ़ते हुए सारी तैयारी भी कर लेता है। अजय सिंह ने भी एयर इंडिया जैसी प्रतिष्ठित एयरलाइन को खरीदने का इरादा करने से पहले ही सब कुछ सोच –विचार तो कर ही लिया होगा। यूं तो कोई भी एयर इंडिया जितनी विशाल कंपनी को खरीदने के बारे में सोच भी नहीं सकता है। एयर इंडिया को जेआरडी टाटा ने ही 1932 में टाटा एयरलाइन के नाम से शुरू किया था। हालांकि बाद में इस कंपनी का राष्ट्रीयकरण हो गया और यह सरकार के पास आ गई। अब देखिए कि एयर इंडिया फिर से टाटा ग्रुप का हिस्सा बनती है या फिर यह अजय सिंह के चेयरमैनशिप वाली स्पाइस जेट को मिलती है।
बहरहाल, जिसे भी एयर इंडिया मिलेगी उसे घरेलू हवाई अड्डों पर चार हजार,400 घरेलू और एक हजार,800 अंतरराष्ट्रीय लैंडिंग एवं पार्किंग स्लाटों के साथ-साथ विदेशी हवाई अड्डों पर 900 स्लाटों का नियंत्रण हासिल होगा। टाटा ग्रुप ने पहले ही दो एयरलाइन कंपनियों में हिस्सेदारी ले रखी है। इनमें एयर एशिया इंडिया है। यह लो कॉस्ट एयरलाइन है। दूसरी फुल सर्विस एयरलाइन “विस्तारा” है।
स्पाइसजेट के चेयरमेन और मैनेजिंग डायरेक्टर अजय सिंह पहली पीढ़ी के उधमी हैं। कहा जाता है कि उनके परिवार में उनसे पहले किसी ने बिजनेस नहीं किया है। यह बात कम लोगों को मालूम होगी कि वे 1996 में दिल्ली में डीटीसी का कायाकल्प कर रहे थे। तब दिल्ली में मदन लाल खुराना मुख्यमंत्री थे। उनकी सरकार में परिवहन मंत्री राजेन्द्र गुप्ता ने अजय सिंह को डीटीसी के काम में सुधार की जिम्मेदारी दी। अजय सिंह ने उस दौरान डीटीसी के बेड़े का बड़े स्तर पर विस्तार किया था और नए-नए रूट शुरू करवाए थे। उन्होंने बाहरी दिल्ली और ग्रामीण दिल्ली में भी डीटीसी बसों के रूट चालू करवाए थे। वे दूरदर्शन से भी जुड़े रहे। उनकी सरपरस्ती में ही डीडी स्पोर्ट्स और डीडी न्यूज शुरू हुआ। यानी अजय सिंह ने बहुत से क्षेत्रों में अपनी पहचान बनाई है।
दरअसल, अजय सिंह के बहाने बात हो रही थी पहली पीढ़ी के कारोबारियों की। सच ही कहा जाता है कि पहली पीढ़ी के उद्यमी ज्यादा अच्छे भविष्यद्रष्टा , लगनशील और अद्भुत मेहनती होते हैं। देखिए अजय सिंह से पहले और बाद में भी पहली पीढ़ी के उद्यमी बने हैं और बनते भी रहेंगे। अब ओला के फाउंडर भाविश अग्रवाल, जोमैटो के दीपेन्द्र अग्रवाल, एचसीएल टेक्नोलॉजीज के शिव नाडार जैसे पहली पीढ़ी के कई आंत्रप्योनर लगातार सामने आ ही रहे हैं। इनमें से अधिकतर पहली पीढ़ी के उद्यमी बेहतर कर रहे हैं। ये रोजगार दे रहे हैं और नौजवानों को लगातार प्रेरित कर रहे हैं। देश के सूचना प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में तो हजारों इस तरह के युवा एक्टिव हैं, जिनके परिवारों में उनसे पहले कभी किसी ने कोई बिजनेस ही नहीं किया। देश में यह समय अपना धंधा करने के लिहाज से उत्तम है। आपको बैंकों और वित्तीय संस्थानों से आसान शर्तों पर लोन भी मिल जाता है। यकीन मानिए कि यह स्थिति बीसेक साल पहले तक नहीं थी। उस दौर में लोन के लिए बहुत धक्के खाने पड़ते थे। आज के दिन अगर आपके पास कोई बढ़िया आइडिया है तो आपकी सफलता तय है।
ऐसे में भी एक बात वे सब गांठ बांध लें, जो कारोबारी बनना चाहते हैं। सफलता शॉर्ट-कट से नहीं मिल सकती। सफल होने के बाद जो पैसे के मामले में किसी भी तरह की धोखेबाजी करते हैं, वे जो कमाते हैं उसे भी गंवा देते हैं। अब रीयल एस्टेट कंपनी यूनिटेक को ही लें। इस कम्पनी के प्रमोटरों की हवस ने एक बेहतर कंपनी को तबाह कर दिया। अब इसके दो बड़े प्रमोटर क्रमश: संजय चंद्रा और उनके अनुज अजय चंद्रा जेल में हैं। कुछ साल पहले तक संजय चंद्रा रीयल एस्टेट की दुनिया के सबसे खास नाम थे। वे राजधानी के डीपीएस स्कूल, आर.के पुरम में पढ़े थे। उनके पिता सिविल इंजीनियर थे। संजय चंद्रा ने यूनिटेक को बुलंदियों पर पहुंचा दिया था। वे दिल्ली-एनसीआर में एक के बाद एक आवासीय और कर्मिशयल प्रोजेक्ट लेकर आ रहे थे। सफलता ने उन्हें न जाने क्यूं, दुर्भाग्यवश लालची बना दिया। वे खूब ग़ड़बड़ करने लगे। उन्होंने अपनी छत का ख्वाब देखने वालों हजारों लोगों के विश्वास की हत्या की और करोड़ों- अरबों रुपये की जमकर हेराफेरी की। इसी के चलते उन पर अनेक केस दर्ज हो गए। अब सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद संजय चंद्रा और उनके भाई अजय चंद्रा को तिहाड़ जेल से मुंबई की ऑर्थर रोड जेल और तलोजा केंद्रीय जेल में शिफ्ट कर दिया गया है, क्योंकि, वे तिहाड़ जेल से भी अपनी गलत योजनाओं को अंजाम देने से बाज नहीं आ रहे थे. ऐसी शिकायत सुप्रीम कोर्ट को मिली थी।
इस तरह का एक और उदाहरण लें। भाई मोहन सिंह देश के बंटवारे के बाद रावलपिंडी से दिल्ली आए थे। उन्होंने रैनबैक्सी लेबोट्ररीज नाम की एक कंपनी खरीद ली। यह 1952 की बात है। वह उनके चचेरे भाइयों की ही थी। फिर उनकी सरपरस्ती में रैनबेक्सी देश की प्रमुख फार्मा कंपनी बन गई। पर भाई मोहन सिंह और उनके बड़े पुत्र डॉ. परविंदर सिंह की मृत्यु के बाद रैनबैक्सी का प्रबंधन आ गया परविंदर सिंह के पुत्रों मलविंदर सिंह और शिविंदर सिंह के पास। इन दोनों ने रैनबैक्सी को जापान की दाइची नाम की कंपनी को बेच ही डाला। उस सौदे में भी बहुत सी गड़बड़ियां भी हुईं। अफसोस कि भाई मोहन सिंह के दोनों पौत्रों को पुलिस की आर्थिक अपराध शाखा द्वारा सैकड़ों करोड़ की धोखाधड़ी के मामले में गिरफ्तार किया गया। लालच के कारण, इन भाइयों ने एक बेहतरीन फार्मा कंपनी को अकारण बेच डाला।
तो बात यह है कि अंततः बिजनेस में सफल तो वहीं होंगे, जिनके पास कुछ अलग आइडिया होगा और वे अपने बिजनेस को मेहनत और ईमानदारी से चलाएंगे। टाटा समूह एक सदी से भी अधिक समय से देश की सेवा कर रहा है। स्पाइसजेट ने भी अपने छोटे से सफर में अपनी योग्यता और क्षमता से लोगों को प्रभावित किया है। ये दोनों सीधे रास्ते पर चलकर बिजनेस करते हैं। अब एयर इंडिया चाहे टाटा समूह के पास जाए या फिर अजय सिंह की स्पाइसजेट के पास, फायदा तो देश को ही होगा।
(लेखक वरिष्ठ संपादक, स्तंभकार और पूर्व सांसद हैं)