आजादी के दीवाने : पुरुष का वेश बनाकर गई थी अंग्रेजों की जेल उड़ाने, पकड़े जाने पर जिंदगी गुजर गई थी जेल में
कोलकाता, 08 अगस्त (हि.स.)। आजादी के महीने में मुक्ति के तराने गा रहे भारत वासियों को ऐसे कई महान क्रांतिकारियों के बारे में नहीं पता है जिन्होंने अपनी हर एक सांस की कुर्बानी वतन को गुलामी की बेड़ियों से मुक्त कराने के लिए दे दी थी। ऐसी ही एक महिला थीं कल्पना दत्ता। अमर क्रांतिकारी मास्टर दा सूर्य सेन के नेतृत्व में हुए चटगांव आंदोलन में बड़ी भूमिका निभाने वाली कल्पना ने पुरुष वेश में अंग्रेजों की पूरी जेल उड़ाने की योजना बना ली थी। दुर्भाग्य से वह पकड़ी गईेे और उनका पूरा जीवन जेल में गुजर गया। आजादी के बाद महात्मा गांधी तथा गुरुदेव रवींद्रनाथ टैगोर के प्रयास से रिहा हो सकी थीं। 1955 में उनके निधन के बाद 1979 में उन्हें “वीर महिला” (वीरांगना नहीं वीर) की उपाधि दी गई।
—
कल्पना चटगांव से बेसिक शिक्षा लेने के बाद 1929 में कलकत्ता चली गई थीं। वहां उन्होंने बीएससी में ऐडमिशन लिया और क्रांतिकारियों की कहानियां पढ़कर प्रभावित हुईं। इन कहानियों ने उन पर गहरा प्रभाव डाला और वह छात्र संघ से जुड़कर खुद देश की आजादी के लिए क्रांतिकारी कामों में रुचि लेने लगीं।इसी बीच कल्पना की मुलाकात क्रांतिकारी सूर्य सेन से हुई। ”इंडियन रिपब्लिकन आर्मी” से जुड़कर उन्होंने अंग्रेजों के खिलाफ मोर्चा खोल दिया। 1930 में इस दल ने सूर्यसेन के नेतृत्व में चटगांव शास्त्रागार लूट लिया। इसके बाद वह अंग्रेजों की नजर में आ गईं तो उन्हें पढ़ाई छोड़कर चटगांव आना पड़ा। वह वहीं से इस दल के चुपचाप संपर्क में रहीं। उनके साथ के कई क्रांतिकारी गिरफ्तार कर लिए गए।
—-
पुरुष वेष में क्रांतिकारियों तक पहुंचाती थी हथियार
– कल्पना अपना वेष बदलकर कलकत्ता से विस्फोटक सामग्री ले जाने लगीं और संगठन के लोगों को हथियार पहुंचाने लगीं। वह पुरुष के वेष में ये सब काम कर रही थीं। उन्होंने साथियों को आजाद कराने की योजना बनाई। इसके लिए जेल की अदालत की दीवार को बम से उड़ाने का प्लान बनाया। लेकिन पुलिस को योजना का पता चल गया। वह वेष बदलकर घूमती फिर रही थीं और पुलिस ने उन्हें गिरफ्तार कर लिया। अभियोग सिद्ध न होने पर उन्हें छोड़ दिया गया। पुलिस का घर पर पहरा होने के बावजूद वह उनकी आंखों में धूल झोंककर भाग गईं। सूर्य सेन को पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया और 1933 में कल्पना भी गिरफ्तार हो गईं।
क्रांतिकारियों पर मुकदमा चला और 1934 में सूर्य सेन को फांसी की सजा दी गई और कल्पना दत्त को आजीवन कारावास की सजा हो गई। सितंबर 1931 को कल्पना और उनके जैसी क्रांतिकारी प्रीतिलता ने हुलिया बदलकर चटगांव यूरोपियन क्लब पर हमला करने का फैसला किया। वह लड़के के वेष में योजना को अंजाम देने जा रही थीं तब तक पुलिस को उनकी योजना के बारे में पता चल गया और उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया। बाद में गांधीजी और रवींद्रनाथ टैगोर की कोशिशों के बाद कल्पना जेल से बाहर आ गईं। जेल से आकर उन्होंने पढ़ाई पूरी की और कम्युनिस्ट नेता पूरन चंद जोशी से उनकी शादी हो गई। 1979 में उन्हें “वीर महिला” की उपाधि दी गई। हालांकि उसके पहले ही 08 फरवरी 1995 को दिल्ली में कल्पना का निधन हो गया था।
कल्पना पर बन चुकी है फिल्म
-2010 में आशुतोष गोवारिकर ने उनके जीवन पर फिल्म ”खेलें हम जी जान से” बनाई। फिल्म में दीपिका पादुकोण और अभिषेक बच्चन ने लीड रोल प्ले किया था।