डॉ. अब्दुल कलाम: करोड़ों लोगों की प्रेरणा
डॉ. अब्दुल कलाम की पुण्यतिथि (27 जुलाई) पर विशेष
योगेश कुमार गोयल
‘मिसाइल मैन’ के नाम से विख्यात डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम (अबुल पाकिर जैनुलाब्दीन अब्दुल कलाम) भारतीय इतिहास में एकमात्र ऐसे राष्ट्रपति रहे हैं, जो वैज्ञानिक रहे हैं। देश के महान वैज्ञानिक होने के साथ-साथ वे एक अद्भुत इंसान और प्रेरणादायक व्यक्तित्व भी थे। सादगी, मितव्ययिता और ईमानदारी जैसे विलक्षण गुणों की मिसाल डॉ. कलाम ने अपने इन्हीं गुणों की बदौलत समस्त देशवासियों का दिल जीत लिया था क्योंकि मौजूदा राजनीतिक परिवेश में ऐसे गुणों वाले व्यक्ति का मिलना दुर्लभ है। यही कारण है कि करोड़ों लोग आज भी उन्हें अपना प्रेरणास्रोत मानते हुए उनकी कही बातों का अनुसरण करते हैं।
उनकी सबसे बड़ी विशेषता यही थी कि उन्होंने जिस भी व्यक्ति के साथ काम किया, उसी का दिल जीत लिया। देश की युवा पीढ़ी को संदेश देते हुए वह कहते थे कि भारत के युवा वर्ग में हिम्मत होनी चाहिए कि वह कुछ अलग सोच सके, हिम्मत हो कि वह कुछ खोज सके, ऐसे नए रास्तों पर चलने की हिम्मत हो, जो असंभव हो, उसे खोज सके और मुसीबतों को जीतकर सफलता हासिल कर सके। वह कहते थे कि आसमान की ओर देखें, हम अकेले नहीं हैं, पूरा ब्रह्माण्ड हमारा मित्र है और जो सपना देखते हुए मेहनत कर रहे हैं, उन्हें बेहतरीन फल देने का प्रयास कर रहा है। सपना सच हो, इसके लिए जरूरी है कि आप सपना देखें।
15 अक्तूबर 1931 को तमिलनाडु के रामेश्वरम में गरीब परिवार में जन्मे अब्दुल कलाम गरीबी और कठिन परिस्थितियों के बावजूद उच्च शिक्षा प्राप्त कर वैज्ञानिक बने, जिनके नेतृत्व में भारत कई उपग्रह तथा स्वदेशी मिसाइलें बनाने में सफल हुआ और परमाणु शक्ति सम्पन्न राष्ट्र भी बना। उन्होंने डीआरडीओ तथा इसरो की कई महत्वपूर्ण परियोजनाओं पर काम कर उन्हें सफल बनाया। अपने जीवनकाल में उन्होंने ‘विंग्स ऑफ फायर’, ‘इग्नाइटेड माइंड’, ‘इंडिया 2020: ए विजन फॉर न्यू मिलेनियम’ इत्यादि 30 से भी ज्यादा पुस्तकें लिखी।
1999 से 2001 के बीच वे भारत सरकार के प्रमुख वैज्ञानिक सलाहकार रहे तथा 2002 से 2007 तक भारत के 11वें राष्ट्रपति रहे। राष्ट्रपति बनने के बाद जब वे राष्ट्रपति भवन पहुंचे तो उनके साथ सामान के रूप में केवल दो सूटकेस थे, जिनमें से एक में उनके कपड़े तथा दूसरे में उनकी प्रिय पुस्तकें थी। आज जहां नेतागण छुट्टियों पर घूमने जाने के लिए बेताब रहते हैं और संसद की कार्यवाहियों से भी गैरहाजिर रहते हैं, वहीं डॉ. कलाम ने राष्ट्रपति रहते केवल दो छुट्टियां ली थी- एक अपने पिता के देहांत पर और दूसरी अपनी मां की मृत्यु होने पर।
देश के सर्वोच्च पद पर रहते हुए कलाम साहब ने सादगी, मितव्ययिता और ईमानदारी की जो मिसाल पेश की, वह आज और कहीं देखने को नहीं मिलती। ऐसा ही एक वाकया स्मरण आता है, जब एकबार उनका पूरा परिवार (कुल 52 सदस्य) उनसे मिलने दिल्ली आया। स्टेशन से सभी को राष्ट्रपति भवन लाया गया, जहां सभी आठ दिनों तक ठहरे। उन पर खर्च हुई एक-एक पाई कलाम साहब ने अपनी जेब से खर्च की। बताया जाता है कि उन्होंने अपने अधिकारियों को स्पष्ट निर्देश दिया था कि उनके इन अतिथियों के लिए राष्ट्रपति भवन की कारें इस्तेमाल नहीं की जाएंगी और उनके खाने-पीने के सारे खर्च का विवरण भी अलग से रखा गया। आठ दिन बाद सभी के दिल्ली से वापस चले जाने पर कलाम साहब ने अपने निजी बैंक खाते से 3.52 लाख रुपये का चेक काटकर राष्ट्रपति कार्यालय को भेज दिया।
राष्ट्रपति पद पर रहते हुए उन्होंने कभी किसी का कोई उपहार अपने पास नहीं रखा। उनका कहना था कि उनके पिता ने उन्हें यही शिक्षा दी है कि कभी किसी का कोई उपहार स्वीकार मत करो। किसी ने एकबार उन्हें दो पैन उपहारस्वरूप दिए थे लेकिन वे भी उन्होंने राष्ट्रपति पद से विदाई के समय लौटा दिए थे।
भारत के बच्चों के भविष्य को लेकर वे चिंतित स्वर में कहते थे कि देश में प्रतिवर्ष दो करोड़ बच्चे जन्म लेते हैं, उन सभी बच्चों का क्या भविष्य होगा और जीवन में उनका क्या लक्ष्य होगा? क्या हमें उनके भविष्य के लिए कुछ कदम उठाने चाहिए या हमें उन्हें उनके नसीब के सहारे छोड़ अभिजात्य वर्ग के फायदे के लिए ही काम करना चाहिए? डॉ. कलाम का मानना था कि यदि भारत को भ्रष्टाचार मुक्त और सुंदर मस्तिष्क वालों का देश बनाना है तो इसमें समाज के तीन लोग सबसे महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं, पिता, माता और गुरु। भारत के भविष्य को लेकर उनके पास एक विजन था, जिस पर ‘इंडिया 2020: ए विजन फॉर न्यू मिलेनियम’ नामक पुस्तक प्रकाशित हुई थी। दरअसल ‘टेक्नोलॉजी इन्फॉर्मेशन, फोरकास्टिंग एंड एसेसमेंट काउंसिल’ नामक एक सरकारी संगठन देश की प्रगति से जुड़ा विजन डॉक्यूमेंट तैयार करता है और 1996 में कलाम साहब इसके अध्यक्ष थे। उन्हीं की अध्यक्षता में 1996-97 में ‘विजन 2020’ डॉक्यूमेंट तैयार किया गया।
उस रिपोर्ट में सरकार को कुछ सुझाव देते हुए बताया गया था कि 2020 तक भारत को क्या कुछ हासिल करने का लक्ष्य रखना चाहिए। रिपोर्ट के आधार पर कलाम साहब ने सरकार को सलाह दी थी कि देश के विकास के लिए तकनीक, विज्ञान, शिक्षा, स्वास्थ्य और सामाजिक क्षेत्र में सरकार को क्या करना चाहिए और आम नागरिकों को इसमें क्या भूमिका निभानी चाहिए। उनका मानना था कि भारत 2020 तक युवाओं के योगदान की बदौलत एक विकसित देश बन जाएगा लेकिन वर्तमान परिस्थितियों के मद्देनजर उनके इस विजन को पूरा होने में अभी बहुत लंबा समय लग सकता है।
डॉ. कलाम कहा करते थे कि दुनिया हमें तभी याद रखेगी, जब हम अपनी आने वाली पीढ़ियों को एक सुरक्षित और विकसित भारत देंगे, जो आर्थिक सम्पन्नता और सांस्कृतिक विरासत से मिला हो। उनका कहना था कि जो लोग अपने दिल से कार्य नहीं करते, वे जिंदगी में भले ही कुछ भी हासिल कर लें लेकिन वह खोखला होता है, जो उनके दिल में कड़वाहट भरता है। कलाम साहब के अनुसार जिंदगी कठिन है और आप तभी जीत सकते हैं, जब आप मनुष्य होने के अपने जन्मसिद्ध अधिकार के प्रति सजग हों। किसी व्यक्ति के जीवन में कठिनाई नहीं होगी तो उसे सफलता की खुशी का अहसास ही नहीं होगा। यह महान् विभूति 27 जुलाई 2015 को भारतीय प्रबंधन संस्थान शिलांग में एक कार्यक्रम के दौरान छात्रों को सम्बोधित करते हुए अचानक दिल का दौरा पड़ने पर सदा के लिए चिरनिद्रा में लीन हो गई।
(लेखक स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं।)