1964 नियमावली में आने वाले शिक्षण संस्थानों के सभी शिक्षक व कर्मचारी पेंशन के हकदार : हाईकोर्ट
1964 नियमावली में आने वाले शिक्षण संस्थानों के सभी शिक्षक व कर्मचारी पेंशन के हकदार : हाईकोर्ट
प्रयागराज, 14 सितम्बर (हि.स.)। इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा है कि शासकीय सहायता प्राप्त निजी शिक्षण संस्थाओं में कार्यरत वह सभी शिक्षक व कर्मचारी पेंशन पाने के हकदार हैं, जो 1964 की पेंशन नियमावली के दायरे में आते हैं।
कोर्ट ने पेंशन का लाभ सिर्फ उच्चतर प्राथमिक विद्यालयों के अध्यापकों तक सीमित करने को सही नहीं माना और इस सम्बंध में जारी आदेश को रद्द कर दिया है। कोर्ट ने इंटरमीडिएट बोर्ड द्वारा मान्यता प्राप्त शासकीय सहायता प्राप्त निजी विद्यालय के अध्यापकों को उनका प्रबंधकीय अंशदान ब्याज सहित जमा करने के लिए 2 माह का समय दिया है। तथा सरकार को आदेश दिया है कि याचीगण को पेंशन का लाभ दिया जाए।
लाल साहब सिंह व अन्य की याचिका पर सुनवाई करते हुए यह आदेश न्यायमूर्ति अश्वनी कुमार मिश्र ने दिया। याचीगण के अधिवक्ता का कहना था कि याचीगण धर्मराजी देवी गंगा प्रसाद सिंह उच्चतर माध्यमिक विद्यालय जौनपुर में सहायक अध्यापक हैं। शुरू में यह उच्चतर प्राथमिक विद्यालय था। 1986 में इसे हाईस्कूल की मान्यता मिल गई। याचीगण रिटायर हो चुके हैं तथा रिटायरमेंट के बाद उन्होंने 5 फरवरी 17 को जारी शासनादेश के तहत पेंशन के लिए अपना प्रबंधकीय अंशदान ब्याज सहित जमा करने की पेशकश की। मगर उसे यह कहकर खारिज कर दिया गया की उक्त शासनादेश का लाभ सिर्फ उच्चतर प्राथमिक विद्यालय के अध्यापकों के लिए है। अधिवक्ता ने हाईकोर्ट द्वारा बुद्धि राम केस में दिए निर्णय का हवाला देते हुए कहा कि इस केस में हाईकोर्ट ने यह स्पष्ट कर दिया है कि पेंशन योजना का लाभ पाने के हकदार वह सभी लोग हैं जो 1964 की पेंशन नियमावली के दायरे में आते हैं।
जबकि सरकारी अधिवक्ता का कहना था की 22 मई 2006 के शासनादेश के जरिए अंशदान जमा करने हेतु कट ऑफ डेट जारी की गई थी। मगर याची ने नियत तिथि के भीतर अपना अंशदान जमा नहीं किया। याची गण का कहना था की 2006 का शासनादेश उनको कभी उपलब्ध ही नहीं कराया गया। तथा याची गण को योजना की जानकारी 2017 में जारी शासनादेश के आधार पर हुई और तब उन्होंने कट ऑफ डेट के भीतर ही अपना अंशदान जमा करने की पेशकश की थी। जिसे अस्वीकार कर दिया गया। 2006 के शासनादेश द्वारा जो कट ऑफ डेट जारी की गई थी उसे हाईकोर्ट ने बुद्धि राम केस में रद्द कर दिया था। तथा 2017 का शासनादेश हाईकोर्ट द्वारा बुद्धि राम केस में दिए निर्णय के अनुपालन में जारी किया गया है।
कोर्ट ने कहा कि इस शासनादेश को सिर्फ उच्च प्राथमिक विद्यालयों तक सीमित नहीं रह सकता है। बल्कि इसका विस्तार उन सभी शिक्षण संस्थाओं तक होगा जो 1964 की पेंशन नियमावली के दायरे में आते हैं। सरकार से अपेक्षा की जाती है कि वह शासनादेश का लाभ ऐसे सभी शैक्षणिक संस्थानों के कर्मचारियों को समान रूप से देगी। कोर्ट ने याचीगण को पेंशन भुगतान न करने का 2 अगस्त 2017 का आदेश रद्द कर दिया है तथा 2 माह के भीतर याची गण का ब्याज सहित अंशदान जमा करवा कर पेंशन भुगतान का आदेश दिया है। उल्लेखनीय है कि प्रदेश सरकार ने 1964 से शासकीय सहायता प्राप्त निजी विद्यालयों के अध्यापकों व कर्मचारियों को भी पेंशन देने का निर्णय लिया जो मान्यता प्राप्त थे।