मानव की महत्ता एवं दायित्व
– लक्ष्मी नारायण पांडेय
मन्त्राधीनम जगत्सर्वं मन्त्राधीनम देवताः । ते मन्त्राः ब्रह्माणाधीनं तस्मात् ब्राह्मण देवताः – मंत्र के अधीन संपूर्ण जगत है, मंत्र के अधीन समस्त देवता हैं और वे मंत्र ब्राह्मणो के आधीन हैं इसलिए धरती पर ब्राह्मणो को देवता कहा जाता है। ब्राह्मण कौन – जो ब्रम्ह विषयक चिंतन में लीन रहे, जो पूर्ण सात्विक हो, जो लोक कल्याण की कामना करे , जो कोई भी भेद भाव न रखे, जो आसुरी प्रवित्ति का लोभी व दम्भी न हो एवं गलत कार्यो में लिप्त न रहे – वह ब्राह्मण है।
ब्रह्म जानाति इति ब्राह्मणः – जो ब्रम्ह को जानता है वही ब्राह्मण है। शुभ्यः च पशुभ्यः च समदर्शिनाः पण्डिताः- जो मनुष्य, पशु आदि में समान दृष्टि रखे वह पंडित है, केवल ग्रंथ पढ़ लेने से वह विद्वान कहलायेगा, ग्रंथि कहलायेगा और रावण की तरह अहंकारी हो सकता हैं लेकिन पंडित नहीं- और जब हमारी अगुवा ब्रम्ह ज्ञानी की संताने गलत कार्यो में लिप्त होती जा रही हैं तो इसे देख कर अन्य जातियों के लोग भी दिग्भ्रमित हों रहे है और गलतिया कर रहे है। नेतृत्व का सतोगुणी और त्यागी होना आवश्यक है क्योँकि आम लोग नेतृत्व से ही प्रेरणा ग्रहण करते है और उसकी ही नक़ल करते है। आज जो हमारे शासक है उनपर भी यही दायित्व है क्योँकि जैसा उनका आचरण होगा जनता भी वैसा ही करेगी । गुरु का अर्थ है सच्चा ज्ञान देने वाला और अज्ञानता के अँधेरे को प्रकाश के माध्यम से मिटाना और शिष्य का अर्थ हैं सद्गुणी होना एवं गुरु की बातों से ज्ञान प्राप्त करना एवं सीखना। गुरु का दायित्व है किसी भी तरह का प्रयोग करके अपने शिष्य की आत्मा को जो शरीर के अवगुणो से युक्त हैं- उन अवगुणो को हटाना । अब मैल धोने के लिए तो साफ़ पानी ही चाहिए, ज्यादा मैल हैं तो कास्टिक, साबुन, नीबू का प्रयोग करना पड़ सकता है- जब सच्चा गुरु उसे रगड़ रगड़ कर धोता है तो उसे तनिक तकलीफ तो रगड़ने से होगी ही- तब उसे सहन करना चाहिए । इसलिए सच्चे गुरु कि ब्रम्हा, विष्णु, महेश से तुलना की जाती है। च्युँकि अंधकार को प्रकाश ही मिटाता है, अतः प्रकाश के लिए एवं अंधकार मिटाने के लिए शरीर में नाभि, हृदय और कंठ और दोनों नेत्रों के बीच ऊपर मस्तक जो मनुष्य को आनंदित करता है- उस आज्ञा चक्र पर बारम्बार ‘ॐ’ या जो भी मंत्र जप करते हो- वह मंत्र वही स्थिर करें, वही अनंत प्रकाश है , जहा भी हों, जैसे भी हों, शुद्ध हों कर देखते रहें फिर सच्चे गुरु चाहे वह पति ही क्योँ न हों- उसके निर्देश के तहत परम अभ्यास करते रहे, तब आज्ञा चक्र जागृत हों उठेगा- आपको समस्त लोकों, महान आत्माओ एवं दिव्यतम शक्तियों तथा आपके पूर्व जन्मो के समस्त कर्म दिख सकेंगे । इसके पश्च्यात ब्रह्म रंध्र जो शिर के सबसे ऊपरी भाग में अवस्थित होता है जो जन्म के समय खोखला होता है एवं माताये उसे तेल आदि से भरती है – वहाँ पर ध्यान केंद्रित करें। वही सभी प्राणियों में परमात्मा का निवास स्थान है।
उदाहरणार्थ – एक अच्छे संत ने गंगा जी के लिए कहा कि इतने पापियों का पाप लेते लेते पापी हों गयी हैं, गंगा जी का आवाहन किया और कहा कि आप माता पापी हों गयी हैं, श्री गंगा ने कहा कि मैं सारे पाप समुद्र को सौप देती हूँ, समुद्र ने कहा कि मैं सारे पाप इस संसार को बदलो के रूप में आकाश को सौप देता हूँ, बादलो ने कहा कि मैं बरस कर धरती के प्राणियों को वह सारे पाप सौप देता हूँ, अब धरती पापिनी हों गयी – धरती ने कहा कि मैं सारे पाप प्राणियों को सौप देती हूँ- अन्न, फल, वृक्ष आदि के रूप में, अन्न, फल, वृक्ष आदि ने कहा कि मैं तो प्राणियों के उदर में चला जाता हूँ और प्राणी जिसका भोग करता है जो पाप नदियों, श्री गंगा ने लिया था वह प्राणी के पेट में चला जाता है और वही मल और विष्ठा बन कर रह जाता है। अर्थात प्राणियों का पाप इस तरह लौट कर उन्ही के पास चला जाता हैं और बीमारियाँ, रोग, अकाल मृत्यु एवं तामसिक व्यवहारों में बदलता रहता है। अतः प्राणियों में मानव प्राणी को जो सारे संसार के प्राणियों का नेतृत्व करता है- उसे प्रति पल सचेष्ट व सावधान, सतर्क हों कर रहना चाहिए ताकि कुतर्क से सदैव दूर रहे।
जय माता गायत्री की, जय गुरुदेव भगवान् व्यास की |
लेखक, पूर्व विधायक एवं फिल्मकार।