कविता : दयानिधि अब तो दया करो- नरेन्द्र श्रीवास्तव
दयानिधि अब तो दया करो
– नरेन्द्र श्रीवास्तव
दयानिधि अब तो दया करो,
प्रभु अब और न देर करो।
मानव पर छाये संकट को,
प्रभु पल में ढेर करो।
हमने ही यह संकट बोया,
कितने अपनों को भी खोया।
हमारे अवगुण चित ना धरो,
प्रभु अब तो कष्ट हरो ।
रोग, शोक, दुःख दूर करो,
प्रभु; सुख के स्त्रोत्र भरो ।
पहले जैसी दुनिया रच कर,
प्रभु हम पर कृपा करो।
दयानिधि अब तो…
श्री नरेन्द्र श्रीवास्तव
आत्म परिचय : इलाहाबाद उच्च न्यायालय में सन् 1993 से एक अधिवक्ता के दायित्वों का निर्वहन करते हुए जब कभी अवकाश के क्षण होते हैं , मन का कोमल संवेग प्रबल हो उठता है और किसी नवीन साहित्यिक रचना के लिए स्वयं को तैयार पाता हूं ।